वो मेरी ज़िंदगी से कुछ ऐसे ग़ुजर गया
ग़ज़ल
वो मेरी ज़िंदगी से कुछ ऐसे ग़ुजर गया
इक फूल शाख़ से गिरा गिर कर बिखर गया
मैं सोचता था हर्फ़-ए-दुआ¹ से असर गया
रब की अता से दस्त-ए-तलब² मेरा भर गया
दौर-ए-ख़िज़ाँ³ में साथ ये तन्हाइयाँ रही
आये समर⁴ तो पेड़ परिंदों से भर गया
कब तक रहोगे मुब्तला⁵ गफ़लत की नींद में
जागो कि अब तो सर से भी पानी गुज़र गया
ऐसी घुटन कि साँस भी लेना हुआ मुहाल
ये कौन इतना ज़हर हवाओं में भर गया
हाकिम⁶ ने देखो, छीन लिये ना! तुम्हारे हाथ
इनआम-ए-फ़न⁷ की चाह में , दस्त-ए-हुनर⁸ गया
आख़िर तेरी अना⁹ की बग़ावत में ऐ ‘अनीस’
दस्तार¹⁰ तो गयी ही गयी साथ सर गया
– अनीस शाह ‘अनीस ‘
1.प्रार्थना 2.याचना के लिए उठे हाथ 3.फल 4.पतझड़ का समय 5.व्यस्त 6.शासक 7.कला के लिए पुरुस्कार 8.कौशल भरा हाथ 9.अहम(ego)10.पगड़ी