ग़ज़ल
ग़ज़ल
चलो प्यार के साथ मंदर अकेले।
मिलेगा खुदा यार अंदर अकेले।।
लियाकत बढ़ी तो लिखें शायरी हम।
नवाज़ा उसी ने ये दफ्तर अकेले।।
रहेगा यही प्यार ज़िंदा हमेशा।
चले साथ क्यों छोड़ दिलबर अकेले।।
पसीना बहा पेट जो पालता है।
सजाया उसी ने मुक़द्दर अकेले।।
कहें हम हक़ीक़त सदा शायरी में।
गया हाथ खाली सिकंदर अकेले।।
सताते जिन्हें पूत माँ बाप रोते।
बहें आँसुओं के समंदर अकेले।।
मिला दो दिनों का बसेरा ये ‘सीमा’।
लगाने पड़ेंगे वो चक्कर अकेले।।
सीमा गर्ग ‘मंजरी’
मौलिक सृजन
मेरठ कैंट उत्तर प्रदेश