ग़ज़ल
ग़ज़ल = ( 11 )
बह्र _ 122-122-122-122
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
काफ़िया _ अल /// रदीफ़ _ नहीं है
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ग़ज़ल
1,,
समझता है हर बात , पागल नहीं है,
ज़हन से वो अब यार , पैदल नहीं है ।
2,,
भरी मांग जिससे ,वो संदल नहीं है ,
लगाया जो तुमने , वो काजल नहीं है ।
3,,
दिवाना हुआ , इश्क़ में इस क़दर वो ,
उसे याद पैरों में , चप्पल नहीं है ।
4,,
अजब खौफ़ छाया ,हुआ क्या यहां पर ,
ये बाज़ार कैसा, कि हल चल नहीं है ।
5,,
नज़र डाल कर ,देख लो तुम भी यारों ,
कुई शय ज़मीं पर, मुकम्मल नहीं है ।
6,,
गुलाबी बदन ,धूप से जल रहा क्यों ,
पुकारो , कहो रब से ,बादल नहीं है ।
7,,
चली आई जब मायके में , ये दुल्हन ,
दिखे पैर सूने से , पायल नहीं है ।
8,,
कहा “नील” ने दोस्तों से , खुशी से ,
शराफत की दुनिया में ,दल दल नहीं है ।
✍️नील रूहानी ,,,,, 08/02/2024,,,
( नीलोफर खान, स्वरचित )