#ग़ज़ल
#ग़ज़ल
■ बोझिल रातें, दिन भारी हैं…!
【प्रणय प्रभात】
◆ बोझिल रातें, दिन भारी हैं।
फिर भी उसके आभारी हैं।।
◆ दुनिया के मेले में हम तुम
सैलानी हैं, व्यापारी हैं।।
◆ पता नहीं कब साथ छोड़ दें,
अब साँसें भी, बेचारी हैं।।
◆ कब जीते हैं दिन रातों से?
कब दिन से रातें हारी हैं??
◆ कुछ पल राहत, बाक़ी आहत,
सब उम्मीदें, त्यौहारी हैं।।
◆ सड़कों पर है धुंध सरीखी,
सारी गलियां, अंधियारी हैं।।
◆ तेरा, मेरा, इसका, उसका।
ये सब बातें, संसारी हैं।।
■संपादक■
न्यूज़ & व्यूज़
श्योपुर (मध्यप्रदेश)