ग़ज़ल
उठ रहा अब ज़माने में ये शौर है।
वो समय और था ये समय और है।।
तोड़ दी है कसम कल सुना चांद ने।
तीरगी का ये आया अजब दौर है।।
रात शबनम के कतरे गरम हो गये।
अब चमन में गुलों का कहां ठौर है।।
आतिशी हो गई है ये बादेसबा ।
अब खिजां का भरोसा बढ़ा और है।।
रात “पूनम” की थी चांद था लापता।
आज ये बात भी काबिले गौर है ।।
जय प्रकाश श्रीवास्तव “पूनम “