ग़ज़ल
दर्द की बूँद न हो रवानी में ।
नूर आता नहीं कहानी में ।
उसका हँसना मजाक ही होगा,
आँख डूबी नहीं जो पानी में ।
मूछ सूखी पै ताव दे दे कर,
वक्त खोया है बदगुमानी में ।
ज़ख्म भरते हैं रोज़ सदियों के,
एक लम्हे की शादमानी में ।
वो जो काँटे निकाले ग़ैरों के,
फूल खिलते हैं उस जवानी में ।
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— ईश्वर दयाल गोस्वामी