ग़ज़ल
रद़ीफ़ो का ही सिलसिला कहते-कहते ।
ग़ज़ल रुक गई काफ़िया कहते-कहते ।
कि संसद से सड़कों,गली औ’ घरों तक,
हवा थम गई वाक़या कहते – कहते ।
बुराई ने मुझको छुआ तक नहीं है,
वही थक गए हैं बुरा कहते – कहते ।
हमारी उन्हें फ़िक्र कुछ भी नहीं है,
थके हम उन्हें बावफ़ा कहते – कहते ।
बदलना पड़ेगा निज़ाम – ए -मुहब़्ब़त,
हुई इंतिहा इब़्तिदा कहते – कहते ।
कोई न चला राह-ए-उल्फ़त अभी तक,
थके सब नबी रास्ता कहते – कहते ।
—- ईश्वर दयाल गोस्वामी ।