ग़ज़ल
ज़िन्द़ग़ी के सुर मिलाते जाइए ।
बेवज़ह ही गुनगुनाते जाइए ।
ग़र नहीं सुनता है कोई ग़म नहीं,
फालतू ही बड़बड़ाते जाइए ।
आइए मिलिए मग़र कुछ दूर से,
यह सबक सबको पढ़ाते जाइए ।
ढाँककर मुँह,नाक,चेहरा, हाथ को,
बेझिझक फिर खिलखिलाते जाइए ।
मौत पर रचकर नई इक शायरी,
ज़िन्द़ग़ी के गीत गाते जाइए ।
—– ईश्वर दयाल गोस्वामी ।