ग़ज़ल
खीझ रिश्तों के दरमियाँ क्यों है ?
आदमी आज बद – जुवाँ क्यों है ?
बहकी-बहकी-सी दिख रही धरती,
मचला-मचला-सा आस्माँ क्यों है ?
भूख खाकर के मस्त हैं बच्चे,
आग ठंडी है पर धुआँ क्यों है ?
जबकि सूखा है प्यार का दरिया,
बाढ़ से पुरख़तर निशाँ क्यों है ?
०००
— ईश्वर दयाल गोस्वामी