ग़ज़ल
जात को तो छोड़िए बदजात भी बाकी नहीं ।
आदमी में आदमी – सी बात भी बाकी नहीं ।
मान,मर्यादा, हया औ’ कायदा सब बिक रहा,
और पुरखों की कोई सौगात भी बाकी नहीं ।
कोई ठंडा दिन गुजरता है नहीं व्यवहार का,
भाव की अब गर्म कोई रात भी बाकी नहीं ।
जिन्दगी शतरंज की कुछ चाल ऐसी चल रही,
शह कोई बाकी नहीं औ’ मात भी बाकी नहीं ।
आज के इस दौर की अब दोस्ती क्या कहें,
प्यार भी बाकी नहीं औ’ घात भी बाकी नहीं ।
००००
— ईश्वर दयाल गोस्वामी