ग़ज़ल
सिर्फ़ उल्फ़त में सब नहीं आता ।
पहले आता था अब नहीं आता ।
यूँ तो गुस्सा मेरा तुम्हीं पर है,
तुम जो आते हो तब नहीं आता ।
कोई गलती ज़रूर की होगी,
वरना ग़म, बे-सबब नहीं आता ।
दर्द-ए-अहसास है तभी सच्चा,
अश्क़ आँखों में जब नहीं आता ।
आदमी, आदमी नहीं, शायद !
आदमी को अदब नहीं आता ।
०००
— ईश्वर दयाल गोस्वामी
सागर, मध्यप्रदेश