ग़ज़ल
वो करीने से काम लेता है ।
गिर रही चीज़ थाम लेता है ।
दोस्ती, प्यार या वफ़ा कहके,
आदमी इन्तिकाम लेता है ।
वक्त ठहरा नहीं कभी पीछे,
आगे बढ़कर म़काम लेता है ।
किससे डरता है,साँप से पूछो,
आदमी का ही नाम लेता है ।
एक छोटा गलत कदम तुमसे,
छीन ख़ुशियाँ तमाम लेता है ।
००००
— ईश्वर दयाल गोस्वामी ।