ग़ज़ल
बिन गरज का एक भी नाता नहीं ।
आदमी को आदमी भाता नहीं ।
बेसुरी है जिंदगी की मौसिकी,
गीत मीठे अब कोई गाता नहीं ।
आपदाओं के निमंत्रण हैं बहुत,
वक्त अच्छी-सी ख़बर लाता नहीं ।
हैं अभी भी आदमी ऐसे बहुत,
बैंक में जिनका कोई खाता नहीं ।
है समस्या की नदी लंबी बहुत,
छोर जिसका कोई भी पाता नहीं ।
दर्द का मेहमान आया दूसरा,
और पहले का अभी जाता नहीं ।
००००
— ईश्वर दयाल गोस्वामी