ग़ज़ल
बेवफ़ा से वफ़ा ज़रूरी है ।
ख़ूबसूरत खता ज़रूरी है ।
दर्द को और तेज जो कर दे,
कोई ऐसी दवा ज़रूरी है ।
सारी पहचान भूलकर,केवल
खुद को पहचानना ज़रूरी है ।
तंदुरुस्ती से कुछ नहीं होता,
रोग से राब्ता ज़रूरी है ।
रोटी,कपड़ा,मकाँ मिला पूरा,
सोचिए और क्या ज़रूरी है ?
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— ईश्वर दयाल गोस्वामी