ग़ज़ल
अब दे नही सकेगा कोई भी दगा मुझे
सबने बनाके रख दिया है आईना मुझे
नज़रों को लग गयी है नज़र उनकी अदा से
नज़रों ने किया उन पे इस क़दर फ़िदा मुझे
मैं हूँ ज़माले ज़िन्दगी गुमनाम फ़साना
मुझको पढ़ेगा जिसने है दिल से सुना मुझे
आदत है इस तरह उसे मेरे यकीन की
करता मुआफ़ देके वो अक्सर सजा मुझे
उसको मिलेगी कैसे खुशी मेरे नाम से
समझा है जिसने दर्द का इक सिलसिला मुझे
सोहबत में जिसके रहके तराशी है ज़िन्दगी
कहने लगे हैं लोग उसी की ख़ता मुझे
रोशन करें वफ़ा जो ‘महज़’ मेरी निगाहें
अब क्या फ़रेब देगा कोई बेवफ़ा मुझे