ग़ज़ल
तुमसे मिलकर आज राहत है मुझे ।
तिश्नगी है और चाहत है मुझे ।
बेवज़ह तुम रूठ जाते हो सनम,
प्यार की तेरे जरूरत है मुझे ।
धड़कनें कहतीं सुनो आवाज़ अब,
ज़िन्दगी ! तुझसे मोहब्बत है मुझे ।
हो गया बदनाम दुनिया में मगर,
क्या करूँ तेरी ही आदत है मुझे ।
लौट आओ पास ग़र ‘अरविन्द’ के,
फिर न जख़्मों से शिकायत है मुझे ।
✍️ अरविन्द त्रिवेदी
महम्मदाबाद
उन्नाव उ० प्र०