ग़ज़ल
दिल ये जाके कहाँ बसा मेरा ।
कोई देता नहीं पता मेरा ।
लोग आते हैं, चाय पीते हैं,
है नहीं जिनसे राब्ता मेरा ।
यार मिलते हैं तो रकीबों-से,
है नहीं कोई आशना मेरा ।
काध्यमंचों से या नशिस्तों से,
हर तरह नाम है कटा मेरा ।
नाकि हिन्दू से न मुसलमाँ से,
आदमी से है वास्ता मेरा ।
साँस में राम जोड़ते चलिए,
सिर्फ़ इतना है मशविरा मेरा ।
०००
__ ईश्वर दयाल गोस्वामी