ग़ज़ल
दिल ये पहले से सजा रक्खा है ।
घर पै उनको जो बुला रक्खा है ।।
वो तो आएँगे हवा की मानिंद,
इसलिए दर ये खुला रक्खा है ।।
खिड़कियाँ साफ नहीं हैं फिर भी,
उनमें शीशे को लगा रक्खा है ।।
फर्श पर धूल बहुत है लेकिन ,
हमने कालीन बिछा रक्खा है ।।
मेज जो साफ नहीं है उस पर ,
साफ कपड़े को चढ़ा रक्खा है ।।
जिन सवालों के लिए वो आयें,
उन ज़वाबों का पता रक्खा है ।।
कोई दीपक नहीं मेरे घर में,
पूरा सूरज ही जला रक्खा है ।।
यूँ तो उजड़ा है चमन, पर घर में,
फूल माली से लिया रक्खा है ।।
कुछ बचा ही नहीं सका अब तक,
इसलिए वक़्त बचा रक्खा है ।।
कोई “ईश्वर” है जिसने ईश्वर को,
आपका हाल बता रक्खा है ।।
—- ईश्वर दयाल गोस्वामी ।