ग़ज़ल
हाथ बाकी हैं कान बाकी है ।
पाँव चलते हैं जान बाकी है ।
गाते-गाते वो मर गया लेकिन,
सुर भी बाकी है तान बाकी है ।
माँस है ख़ाक,जल चुकी हड्डी,
बाद इसके भी जान बाकी है ।
जल चुका यद्यपि नगर पूरा,
प्यार का पर मकान बाकी है ।
तोड़ा-फोड़ा गया बहुत,लेकिन
ज्यूँ का त्यूँ ये ज़हान बाकी है ।
जीतकर एक आ गया लेकिन,
दूसरे का रुझान बाकी है ।
शायरी खो गई लतीफ़ों में,
गूँगी , बहरी ज़ुबान बाकी है ।
मायके आ के मर गई बेटी,
सासरे का निशान बाकी है ।
यज्ञ में लुट गया शहर पूरा,
फिर भी कहते हो दान बाकी है ।
आइए शौक से मेरे घर पै,
चाय बाकी है पान बाकी है ।
मैं खड़ा हूँ चुनाव-ए-उल्फ़त में,
तेरा आना रुझान बाकी है ।
खो गया सत्य आज ‘ईश्वर’ का,
भक्त की फिर भी शान बाकी है ।
—— ईश्वर दयाल गोस्वामी ।