ग़ज़ल
अभी हाथ में असर नहीं है ।
अभी पाँव में सफ़र नहीं है ।
कितना अमन चैन है बरपा ?
मग़र कोई भी निडर नहीं है ।
अँधियारा है चकाचौंध का,
अभी शहर में सहर नहीं है ।
गाँव अभी भी प्यासे-प्यासे ,
नदिया है पर नहर नहीं है ।
आँखें हैं घर से बाहर तक,
लेकिन उनमें नज़र नहीं है ।
जितनी लंबी – लंबी नाकें
उतने चौड़े जिगर नहीं है ।
—– ईश्वर दयाल गोस्वामी ।