ग़ज़ल
पूर्व से कुछ और काला हो गया ।
ज़िन्दगी का रंग गहरा हो गया ।
जो हुआ,अच्छा हुआ,सब ठीक है,
रात बीती और सबेरा हो गया ।
दर्द ने खोदा कुआँ दिल बीच में,
रिसते-रिसते आज दरिया हो गया ।
छीन ली शक्कर ज़फाओं ने मेरी,
हर यक़ीं का स्वाद फीका हो गया ।
कुछ न पाने की रही चाहत मेरी,
जो भी था वो और ज्यादा हो गया ।
बंद आँखों ने दिखाया सच यहाँ,
आँख खुलते ही अँधेरा हो गया ।
000
—- ईश्वर दयाल गोस्वामी