ग़ज़ल
जल रहा है यहाँ जहाँ तन्हा ।
आग तन्हा है और धुआँ तन्हा ।
तन्हा – तन्हा भभक रहे शोले,
सुलगा-सुलगा हरिक रुआँ तन्हा ।
एक चिड़िया है बाम पर घर के,
मैं भी तन्हा हूँ और मकाँ तन्हा ।
भीड़ दिखती है जो शरीरों की,
उनमें जीती है आत्मा तन्हा ।
तन्हा – तन्हा सुलग रहे तारे,
चाँद तन्हा है कहकशाँ तन्हा ।
बाग में भीड़ सिर्फ़ फूलों की,
बाग तन्हा है बागवाँ तन्हा ।
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— ईश्वर दयाल गोस्वामी ।