ग़ज़ल
घर से जा बंजर में रह ।
फिर आकर तू घर में रह ।
जिन्दा समझा जाएगा,
रोज़-ब-रोज़ ख़बर में रह ।
दफ़्तर से तू आकर घर,
उसके दिल-दफ़्तर में रह ।
कुछ तो अच्छा कर पाए,
ऐंसे तू अवसर में रह ।
तन से रह इस दुनिया में,
मन से तू ‘ईश्वर’ में रह ।
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—- ईश्वर दयाल गोस्वामी ।