ग़ज़ल
ज़िन्दगी अब अजाब की सी है ।
खाली बोतल शराब की सी है ।
दर्द लिक्खा है हर सफे जिसके,
ज़िन्दगी उस किताब की सी है ।
अपनी हालत का ज़िक्र क्या कीजै ?
एक बिगड़े नवाब की सी है ।
लब हैं नाजुक , महक रहीं आँखें,
उसकी सूरत गुलाब की सी है ।
है अँधेरा , कभी उजाला भी,
रौशनी माहताब की सी है ।
—- ईश्वर दयाल गोस्वामी ।