ग़ज़ल
हटा उपल रास्ता बनेगा,
तुम्हारे संँग काफ़िला बनेगा।
चले सफर में ले साथ सबको,
तभी सफल फ़लसफ़ा बनेगा।
जतन से पाला उसी को तोड़ा,
लगा जो गुल आसरा बनेगा।
छिटक रहे खार जो जले पर,
वो क्या किसी की दवा बनेगा?
दिखा दे राहें भटक गए जो,
वही तमस में शमा बनेगा।
ज़मीं से उतरा फलक पे तारा,
अदब से रोशन निदा बनेगा।
खुला है दर नीले आसमां का,
जहाँ सुकूं आशियां बनेगा।
गिरी थी बूंदे जो बादलों से,
शजर हरा इक वहाँ बनेगा।
नहीं किताबों में पढ़ सकोगे,
जो शब्द मेरा दुआ बनेगा।
पढ़ो कभी पढ़ना’ आह दिल की
वफ़ा का जो आइना बनेगा
नदी के’ संग बह रहा जो’ जीवन
रूके अबद में फ़ना बनेगा।
संतोष सोनी “तोषी”
जोधपुर (राज.)