ग़ज़ल
गुलों से सजा वो हसीं इक शहर है
न जाने लगी उसको कैसी नजर है।
उखड़ने लगी सांस सड़कों की देखो
न आया है राही न कोई खबर है।
छुपा दर्द बदला क्यूँ आहों में सब के,
दवाओं में किसने मिलाया जहर है।
कहीं कोई टूटा सितारा फलक पर,
ज़मीं पर रहे लोग ही बेखबर है।
करे बात दुनिया में चैनों-अमन की,
वहीं लोग ढ़ाते जहां में कहर है।
सुकूं से सराबोर हो तर-बतर पर,
क्यूं मन की जमीं पर खिजा की लहर है
इधर या उधर ढूंढ़ती जा रही हूँ,
बता है कहाँ जिंदगी तू किधर है।
इसी आस में कोई आए परिंदा,
खड़ा वो समंदर किनारे शज़र है।
चला दूर आकाश नजरें झुकाए,
गुलाबी सहर में शफ़क़ तक सफर है।
संतोष सोनी “तोषी”
जोधपुर ( राज.)