ग़ज़ल
ताल-बेताल से निभाती हूँ,
मैं वो नादां जहां से आती हूँ।
है ख्यालों के सब परिंदें जो,
आज उनको चलो उड़ाती हूँ।
क़ायदे छोड़ मन चला अपनी,
वो जो राहें मैं खुद बनाती हूँ।
मुफलिसी छोड़ती नहीं पीछा,
रेत के रोज़ घर सजाती हूँ
आँख नम होंठ मुस्कुराते हैं
गम को जब भी कभी छुपाती हूँ।
देखती हँस के ज़िंदगी जब भी,
गीत उसको नया सुनाती हूँ।
संतोष सोनी “तोषी”
जोधपुर ( राज.)