Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
4 Feb 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

चाहत सी हो गयी है तेरे यूँ ख़ुमार की ।
पैमाना बन गया हूँ तेरे ऐतबार की।

लगने लगा है घर तेरा मैख़ाने की तरह I
रहती है तलब अब तो तेरे इंतज़ार की ।

मौसम भी इस तरह से आजकल ख़राब है ।
बारिश भी लग रही है दुश्मन बहार की ।

बुत बन गयी हैं चाहतें हमारी इस तरह ।
चलता हूँ लड़खड़ाती है राहें भी प्यार की ।

अब तो ‘महज़’ तुम्हारे सिवा ग़र कहीं रहूँ।
लगती है ज़िन्दगी ये हमारी उधार की ।

Language: Hindi
2 Likes · 1 Comment · 201 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Mahendra Narayan
View all
You may also like:
याद - दीपक नीलपदम्
याद - दीपक नीलपदम्
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
Sex in itself has no meaning. It’s what we make of it. Our s
Sex in itself has no meaning. It’s what we make of it. Our s
पूर्वार्थ
"एक ख्वाब टुटा था"
Lohit Tamta
2837. *पूर्णिका*
2837. *पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
"उजाड़"
Dr. Kishan tandon kranti
!! होली के दिन !!
!! होली के दिन !!
Chunnu Lal Gupta
मेरा दुश्मन
मेरा दुश्मन
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
Dr Arun Kumar shastri
Dr Arun Kumar shastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
हम और तुम
हम और तुम
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
ज़िंदगी - एक सवाल
ज़िंदगी - एक सवाल
Shyam Sundar Subramanian
उदास शख्सियत सादा लिबास जैसी हूँ
उदास शख्सियत सादा लिबास जैसी हूँ
Shweta Soni
तारीफ किसकी करूं किसको बुरा कह दूं
तारीफ किसकी करूं किसको बुरा कह दूं
कवि दीपक बवेजा
Swami Vivekanand
Swami Vivekanand
Poonam Sharma
उसे लगता है कि
उसे लगता है कि
Keshav kishor Kumar
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Mahendra Narayan
रिश्ते प्यार के
रिश्ते प्यार के
Dr. Akhilesh Baghel "Akhil"
कालः  परिवर्तनीय:
कालः परिवर्तनीय:
Bhupendra Rawat
घर में यदि हम शेर बन के रहते हैं तो बीबी दुर्गा बनकर रहेगी औ
घर में यदि हम शेर बन के रहते हैं तो बीबी दुर्गा बनकर रहेगी औ
Ranjeet kumar patre
वो तुम्हारी पसंद को अपना मानता है और
वो तुम्हारी पसंद को अपना मानता है और
Rekha khichi
दर्पण
दर्पण
Kanchan verma
..
..
*प्रणय*
पिया - मिलन
पिया - मिलन
Kanchan Khanna
"यादें" ग़ज़ल
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
आज बुजुर्ग चुप हैं
आज बुजुर्ग चुप हैं
VINOD CHAUHAN
बेवजह यूं ही
बेवजह यूं ही
Surinder blackpen
*मेले में ज्यों खो गया, ऐसी जग में भीड़( कुंडलिया )*
*मेले में ज्यों खो गया, ऐसी जग में भीड़( कुंडलिया )*
Ravi Prakash
सच तो रंग काला भी कुछ कहता हैं
सच तो रंग काला भी कुछ कहता हैं
Neeraj Agarwal
"उम्रों के बूढे हुए जिस्मो को लांघकर ,अगर कभी हम मिले तो उस
Shubham Pandey (S P)
ब्राह्मण बुराई का पात्र नहीं है
ब्राह्मण बुराई का पात्र नहीं है
शेखर सिंह
“लिखें तो लिखें क्या ?”–व्यंग रचना
“लिखें तो लिखें क्या ?”–व्यंग रचना
Dr Mukesh 'Aseemit'
Loading...