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4 Feb 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

चाहत सी हो गयी है तेरे यूँ ख़ुमार की ।
पैमाना बन गया हूँ तेरे ऐतबार की।

लगने लगा है घर तेरा मैख़ाने की तरह I
रहती है तलब अब तो तेरे इंतज़ार की ।

मौसम भी इस तरह से आजकल ख़राब है ।
बारिश भी लग रही है दुश्मन बहार की ।

बुत बन गयी हैं चाहतें हमारी इस तरह ।
चलता हूँ लड़खड़ाती है राहें भी प्यार की ।

अब तो ‘महज़’ तुम्हारे सिवा ग़र कहीं रहूँ।
लगती है ज़िन्दगी ये हमारी उधार की ।

Language: Hindi
2 Likes · 1 Comment · 209 Views
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