ग़ज़ल
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प्यार में जाँ निसार मत करना।
गैर पे एतबार मत करना।
इश्क का रंग मौसमों सा है
दिल कभी बेकरार मत करना।
पाक़ अस्मत तुझे बचानी है
ज़िंदगी दाग़दार मत करना।
वो समझ ले नहीं ख़ुदा ख़ुद को
मिन्नतें बार-बार मत करना।
आशिकी में दग़ा मुनासिब है
बेरुख़ी इख़्तियार मत करना।
बेबसी बेख़ुदी से बढ़कर है
बुझदिलों में शुमार मत करना।
याद ‘रजनी’ तुम्हें सताएगी
तुम कभी इंतज़ार मत करना।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी(उ. प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर