ग़ज़ल
वो वफाओं का आईना होगा
प्यार से हमको देखता होगा
इम्तहाँ लेगा वो टकरा हमसे
कही पत्थर कहीं शीशा होगा
छिप न पायेगा शरम नजरों में
जब भी खोलेगा सामना होगा
टूट जाने दो रूठ जाने दो उसे
देख लेगें हम जो हादसा होगा
इक मुलाकात का हसीं मंजर
उसकी नजरों से झाँकता होगा
मैं मुरादों का ‘महज’ उसका शहर
वो तो मेरे घर का रास्ता होगा