ग़ज़ल
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तुम्हारा साथ मुझे अब दवा सा लगता है।
तुम्हारा प्यार मुझे अब दुवा सा लगता है।
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कभी हमराज़ था जो आज मिज़ाजन बदला।
पुराना यार मुझे अब नया सा लगता है।
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उसे ख़बर ही नहीं इंतेहा मोहब्बत की।
वह बेवफा भी मुझे बावफा़ सा लगता है।
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मैं राज़दार हूं जिस शख्स के गुनाहों का।
अब वही शख्स ज़माने को खुदा लगता है।
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“सगी़र” छोड़ गया मुझको जब अकेला वो।
हर एक लम्हा मुझे अब सजा़ सा लगता है।