ग़ज़ल
छोड़ कर मुझको गए तो सिसकियां रह जाएंगी।
याद आएगी मेरी बस हिचकियां रह जाएंगी।
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जब तलक है ज़िंदगी तुमको मेरी की़मत नहीं।
बाद मेरे फिर सितम की आंधियां रह जाएगी।
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देर से इंसाफ़ पर जब तोड़ दे मज़लूम को।
फिर अदालत को लिखी सब अर्जि़यां रह जाएंगी।
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हिंदी उर्दू के लिए कोई तअ़स्सुब गर रहा।
फिर कोई भाषा बचे ना बोलियां रह जाएंगी।
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जिंदगी में मुश्किलें है फिर भी यह आसान है।
चाहे जितनी खेल लोगे पारियां रह जाएंगी।
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वक्फ़ कर दो जिंदगी को दूसरों के नाम पर।
हम नहीं होंगे मगर यह तख्तियां रह जाएं गी।
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प्यार को नीलाम कर दोगे सरे बाजार तो।
जिस्म की बोली लगेगी मंडियां रह जाएं गी ।
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आसमानों की बुलंदी तक पहुंचती बेटियां।
हौसला इनका जो टूटा बेड़ियां जाएंगी।
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वह फरिश्ते होंगे लेकिन हम “सगीर” इंसान हैं।
लाख हम कोशिश करें पर गलतियां रह जाएंगी।