ग़ज़ल
रंजो-गम अपना, छुपाना आ गया है।
हां, मुझे भी मुस्कुराना आ गया है।।
अब न रुसवा कर सकेंगे अश्क मुझको।
आंख में उनको दबाना आ गया है।।
जो निगाहें सामने उठती नहीं थीं।
उनको अब नजरें मिलाना आ गया है।।
अपना सब कुछ सौंप दूं, मैं कैसे उसको।
चेहरे पे चेहरा लगाना आ गया है।।
तब से सहमी-सहमी हैं कलियां चमन की।
जब से माली को सताना आ गया है।।
रिश्ते बौने हो गए बदली फिजा में।
कितना बदतर अब जमाना आ गया है।।
हर गली-कूंचों में हैं बहशी-दरिंदे।
नांच हैवानी रचाना आ गया है।।
हैं कहीं पर सिसकियाँ, चीख़ें कहीं पर।
मुस्कुराहट को मिटाना आ गया है।।
दिल भले ही न मिलें पर ‘विपिन’ को भी।
हाथ सबसे ही मिलाना आ गया है।।
-विपिन शर्मा
रामपुर 9719046900