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20 Dec 2023 · 1 min read

ग़ज़ल

ग़ज़ल

निग़ाहों से निग़ाहें मिल रुहानी काम करती हैं
असर दिल का किसी दिल के हवाले आम करती हैं/1

किसी मुस्क़ान की ख़ातिर ज़माना भूल जाते हैं
सुहानी चाहतें ऐसा ग़ज़ब अंज़ाम करती हैं/2

जिसे चाहा वही पाया किया था रूह से संगम
ख़ुदाया नूर की रस्में हसीं पैग़ाम करती हैं/3

सलामत हूँ दुवाएँ यार की मेरी हिफ़ाजत में
बलाएँ रोक लेती हैं विदा इल्ज़ाम करती हैं/4

निभाए साथ अपना जो वही सुंदर तराना है
मिरी धड़कन धड़क सुर में हृदय गुलफ़ाम करती हैं/5

कभी अपने कभी मेरे सवालों को समझ लेना
रुतें ये धूप पानी की घनों का नाम करती हैं/6

मुहब्बत की लिखावट में लिखा हर गुल का अफ़साना
गुलों की क़िस्मतें खिलकर मुझे अब राम करती हैं/7

आर.एस. ‘प्रीतम’

Language: Hindi
110 Views
Books from आर.एस. 'प्रीतम'
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