ग़ज़ल
क़िताबों से मुहब्बत कर तुझे ज़न्नत दिखा देंगी
ज़मीं से ये उठा तुझको फ़लक छत पर बिठा देंगी/1
जहां झूठा मगर है ज्ञान तो सच्चा इसे समझो
किताबों के दिलों में झाँकिए जीना सिखा देंगी/2
भरी मुट्ठी उड़ा दी ख़ाक की है ज़िंदगी ऐसी
क़िताबें हैं अमर जीवन ग़ज़ल जैसा बना देंगी/3
तुम्हारी ज़िंदगी में अहमियत ये है क़िताबों की
पढ़ोगे तो जिता देंगी भुलाओगे हरा देंगी/4
क़िताबों की कहानी है गगन जैसी ज़मीं जैसी
सितारे चाँद सूरज ये चमन सागर लुटा देंगी/5
दिखावा दंभ भूलो तुम क़िताबें भूल मत जाना
यहीं हैं जो ज़मीं बंजर में भी गुलशन खिला देंगी/6
कहे ‘प्रीतम’ बना प्रीतम क़िताबे-इश्क़ हो जाए
तेरी ये चाहतें दिल को ख़ुदा से भी मिला देंगी/7
आर. एस.’प्रीतम’