ग़ज़ल
आज ग़ज़ल से बात हुई अनजाने में ।
गाने लगा हूँ उसको मैं अफसाने में ।
अपने ग़म को ओढ़ काफिया रहती है।
और रदीफ़ लगा है खुशी निभाने में ।
रोग सियासत का पाला है यूँ उसने ।
सबको ठाना है वो आज गिराने में ।
चोट करे ज़ज़्बातों पे वो महफ़िल में ।
जब मुसकाये देख मुझे वो गाने में ।
भूख बढ़ाती हैं बातें अक्सर उसकी ।
महज़ गरीबी ज़ुबां से लगा मिटाने में I