ग़ज़ल
लुटा दूँ प्यार का सावन अगर तुम साथ हो मेरे
बना दूँ दिन सभी पावन अगर तुम साथ हो मेरे/1
मुहब्बत की पनाहों में निग़ाहें पाक रखता हूँ
बहारें दूँ खिले गुलशन अगर तुम साथ हो मेरे/2
दया करता उसी की याद बसती है यहाँ दिल में
बनालूँ याद को दर्पण अगर तुम साथ हो मेरे/3
कहें लब जो हमारे खुल सदा निश्छल कहानी हर
मिले विपरीत होकर बल अगर तुम साथ हो मेरे/4
भला करके मिलेगा लाभ उल्टो शब्द को समझो
बने नतनू यहाँ नूतन अगर तुम साथ हो मेरे/5
रचा जीवन यहाँ क्यों चार ही दिन का कहा जाए
रचा उल्टा करे सुलझन अगर तुम साथ हो मेरे/6
सुनो ‘प्रीतम’ यहाँ शब्दों की फ़ितरत ही सुहानी है
दिशाएँ न्यूज़ का मधुबन अगर तुम साथ हो मेरे/7
आर. एस. ‘प्रीतम’
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