ग़ज़ल
ग़ज़ल
चलो हर हाल में प्यारे फ़साना छोड़ दो अब तो
करो तुम ज़िंदगी में कुछ बहाना छोड़ दो अब तो/1
जिसे सुनके सभी झूमें लबों से गुनगुनाएँ भी
लबालब वो मुहब्बत का तराना छोड़ दो अब तो/2
कभी बादल से चाहत की अदा सीखो सँवर जाओ
किसी बंजर ज़मीं से दिल रुठाना छोड़ दो अब तो/3
अमीरों से हिफ़ाज़त हो नहीं सकती गुलामी क्यों?
गुलामी है ग़रीबी ही निभाना छोड़ दो अब तो/4
ज़मानत प्यार की दिल से कराने जो कभी आया
इबादत का उसी ख़ातिर ख़ज़ाना छोड़ दो अब तो/5
ख़ुदा से कौन जीता है सभी हारे ज़माने में
बसा दिल में अदावत का ठिकाना छोड़ दो अब तो/6
रहो चाहे सुरंगों में बुराई हार जाती है
शरारत का कोई सपना सजाना छोड़ दो अब तो/7
आर. एस. ‘प्रीतम’