ग़ज़ल
फूलों सी मुस्कान तुम्हारे अधरों की
कालियाँ हैं पहचान तुम्हारे अधरों की
बोल घोल दो मिस्री सारे आलम में
बातें लगती गान तुम्हारे अधरों की
रंग लाल बन जाते सारे पल्लव के
कर ले ज़रा सी भान तुम्हारे अधरों की
कलियाँ छूते रहते अक्सर जान तुम्हें
भँवरे कर गुणगान तुम्हारे अधरों की
समझे अमृत अधर सिक्त जो देख तेरी
करते रहते पान तुम्हारे अधरों की
मौसम ढ़ल जाता है रात औ शाम में
देख महज़ बिहान तुम्हारे अधरों की