ग़ज़ल
हज़ारों चाहने वाले निभाए एक मिल जाए
लगा सीने से ख़ुशबू गुल ज़माने हेतु खिल जाए/1
किसी की हसरतें समझे ख़ुदा का नेक बंदा वो
करूँ तारीफ़ उसकी मैं ज़ुबाँ वरना तो सिल जाए/2
तेरा दीदार पाकर ज़र्फ़ मेरा और बढ़ जाता
उदय सूरज हुआ जैसे हृदय ऐसा बदल जाए/3
रुहानी प्यार अपना है बढ़े बढ़ता सदा जाए
नज़र डाले बुरी कोई ज़मीं उसकी भी हिल जाए/4
मिलो मुझसे मुहब्बत से बसालो तुम निग़ाहों में
कोई मंज़र अगर देखे हिले इतना कि जल जाए/5
रिझाए भूमि उल्फ़त की गगन देता बधाई है
इनायत ये मुहब्बत पर मिली तक़दीर फल जाए/6
किसी ‘प्रीतम’ ने चाहा है वफ़ा उसकी खिला देना
बिना चाहत लिए कोई ग़ुज़ारा इक न पल जाए/7
#आर. एस. ‘प्रीतम’
#सर्वाधिकार सुरक्षित ग़ज़ल