ग़ज़ल
बुराई भूल जाओ तो मनाया दशहरा मानो
कोई रोता हुआ तुमने हँसाया दशहरा मानो/1
पिता-माता तुम्हें प्यारे वचन उनके निभाते हो
यही निश्चय अगर दिल से निभाया दशहरा मानो/2
नहीं है भेद दिल में गर सभी से प्रेम करते हो
गले से रंक भी हँसकर लगाया दशहरा मानो/3
किसी शबरी के झूठे बेर खाने की इनायत हो
मुहब्बत से क़दम सदक़े बढ़ाया दशहरा मानो/4
लगाओ दश हरे पौधे जलाओ मत कहीं रावण
प्रदूषण सच में चाहत कर मिटाया दशहरा मानो/5
परायी नार को बहना समझ कर तुम करो रक्षा
हृदय के काम को खुलकर जलाया दशहरा मानो/6
बुराई का नतीज़ा भी बुरा होता समझ जाओ
भुलाकर शूल गुल कोई खिलाया दशहरा मानो/7
#आर. एस. ‘प्रीतम’