ग़ज़ल
ग़ज़ल
पता पल का नहीं है पर अलार्म भर के सोते हैं
भुला इंसान को पूजा बुतों की कर के सोते हैं/1
जिन्हें ख़ुद से मुहब्बत है दिलों से प्यार पाते हैं
खिले ग़ुल ज्यों हमेशा दिल सभी का हर के सोते हैं/2
अभी पागल मिलें हैं पर किसी पागल से मिल पाऊँ
यहाँ पागल किसी पागल से हरपल डर के सोते हैं/3
मुझे समझे मुझे जाने किसी में दम नहीं देखो
ख़ुदा ख़ुद को समझ मुझको रुलाकर हँस के सोते हैं/4
जिसे चाहत हुई दिल से उसे मंज़िल मिली यारों
चुराते काम से दिल जो वही सब मर के सोते हैं/5
मनुज जिसको नहीं प्यारा मनुज वो ख़ुद नहीं समझो
मिले ऐसे ज़रा होकर जरा मन कर के सोते हैं/6
लिखो ‘प्रीतम’ इबारत तुम पढ़ेंगे लोग मन्नत कर
चुने मोती जहां में लोग दिल में भर के सोते हैं/7
#आर. एस. ‘प्रीतम’