#ग़ज़ल-
#ग़ज़ल-
■ पीपल अब भी वैसा है…!!
【प्रणय प्रभात】
– ऐसा है या वैसा है।
पैसा आख़िर पैसा है।।
– सपने अब भी आते हैं।
लेकिन रंग धुएं सा है।।
– झूला बेशक़ टूट चुका।
पीपल अब भी वैसा है।।
– बरसों बाद मिला लेकिन।
बस ये पूछा कैसा है??
– याद रखूं ना भूल सकूं।
रिश्ता ही कुछ ऐसा है।।
– नीली छतरी वाला बस।
जैसे के संग तैसा है।।
– सुनकर आंखें बरस पड़ें।
किस्सा दिल का ऐसा है।।
– सारी दुनिया बदल गई।
“प्रणय” मगर पहले सा है।।
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)