#ग़ज़ल-
#ग़ज़ल-
■ मशहूर हूं अब…!
【प्रणय प्रभात】
★ बेशक़ सब से दूर हूँ अब।
पर ख़ुद को मंज़ूर हूँ अब।।
★ गुमनामी की ख़्वाहिश है।
इस दर्ज़ा मशहूर हूँ अब।।
★ संग-दिलों की बस्ती में।
शीशा था बस चूर हूँ अब।।
★ कल की बात अलग सी थी।
जज़्बा नहीं फ़ितूर हूँ अब।।
★ किरची कौन समेटेगा?
पूरा चकनाचूर हूँ अब।।
★ दर्द-सितम ग़म चोट कई।
दौलत से भरपूर हूँ अब।।
★ कल तक बासी ज़ख़्म रहा।
इक ताज़ा नासूर हूँ अब।।
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)