#ग़ज़ल
#ग़ज़ल
■ चादर मलीन लगती है।।
【प्रणय प्रभात】
● एक पुख़्ता यक़ीन लगती है।
इस क़दर बेहतरीन लगती है।।
● शब सलीके से बीत जाए तो।
हर सहर ख़ुद हसीन लगती है।।
● जिस्म हारा है उम्र के आगे।
रूह ताज़ा-तरीन लगती है।।
● हमने बन के कबीर ओढ़ी थी।
फिर भी चादर मलीन लगती है।।
● हर दिखावे की बज़्म में मुझको।
सादगी ही ज़हीन लगती है।।
● तय है बच पाना विश्वमित्रों का।
मेनका तप में लीन लगती है।।
● सांप सा फन उठाएं रिश्ते तो।
ज़िंदगी आस्तीन लगती है।।
● तुम उसे कोई नाम दो लेकिन।
वो मुझे महज़बीन लगती है।।
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)