ग़ज़ल
ग़ज़ल
नहीं कभी होते अकेले साथ चलती है कायनात
रात में तो नींद रहती ले चांद तारों की बारात
खुलती जब आंख तो प्रात का वंदन करें जब
हाथ में ले लालिमा सूर्य रश्मियां देती जवाब
रखें सदा दूरी बना कर निराशा हो या अवसाद
भीतर की वादियों में सुनें निरंतर अनहद नाद
जिंदगी के हों सुहाने रास्ते या कि हों तंग गलियां
जो मिले छोटा बड़ा कहते चलो सबको आदाब
जिधर भी चाहो तुम आंखें घुमा कर देख लो
नज़र आयेगी हमेशा अनोखी अजूबी करामात।
बांटना है कुछ अगर तो बस प्यार ही को बांटिए
नफरतों के नाकार से बनती नहीं कभी कोई बात।