#ग़ज़ल
#ग़ज़ल
■ शायद मुझे पता था।
【प्रणय प्रभात】
★ कितने सितम करेगा, शायद मुझे पता था।
क्या रूप कल धरेगा, शायद मुझे पता था।।
★ शातिर समय की मंशा, अच्छे से जानता था।
सुख-चैन सब हरेगा, शायद मुझे पता था।।
★ सबसे अलग है आख़िर, तेरा दिया हुआ है।
ये ज़ख़्म ना भरेगा, शायद मुझे पता था।।
★ उस पे यक़ीन कल ना, उस पे यक़ीन अब है।
दिन रात से डरेगा, शायद मुझे पता था।।
★ जो इश्क़ का परिंदा, कल तक उरूज़ पे था।
बेमौत ही मरेगा, शायद मुझे पता था।।
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)