ग़ज़ल
ग़ज़ल
ये खबर हमने पढ़ी है आज के अखबार में।
दे रहे नारा महज जो लोग हैं सरकार में।।
बात पर उनकी फिदा जनता हमारे देश की,
सत्य देखा ही नहीं जिनके कभी किरदार में।
पाल बैठे हैं महज जो कुर्सियों की ख्वाहिशें,
लग रही हैं बोलियाँ उनकी सरे बाज़ार में।
आ गया मौसम चुनावी वोट पाने के लिए,
जा रहे हैं रोज नेता आज कल दरबार में।
देख लगता आँकड़ों को देश जन्नत बन गया,
पर जुदा तस्वीर दिखती हर जगह व्यवहार में।
चंद बातें पूछ लीं जब मुख्तलिफ आवाज़ ने,
बढ़ गईं बेचैनियाँ बेइंतहा रफ्तार में।
बेबसी अशआर में बोलो कहे कैसे ग़ज़ल,
महजबीं को देख शायर खो गया रुखसार में।
डाॅ बिपिन पाण्डेय