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6 Feb 2023 · 1 min read

ग़ज़ल

मुझ को मुझ से ही जुदा करती है
वो मुझे रोज़ नया करती है

बाद में रखती है कोई मरहम
पहले वो ज़ख्म हरा करती है

कोई तो है जो मेरे इस दिल को
एक ख़त रोज़ लिखा करती है

हम वो उजड़ी हुई बस्ती जिसके
बद्दुआ साथ रहा करती है

रिश्ता कोई भी हो लेकिन औरत
अपना हर फ़र्ज़ अदा करती है

जब भी हाथों में उठाता हूँ क़लम
तेरी तस्वीर बना करती है

मैं अभी उसको नहीं जान सका
जो मेरे हक़ में दुआ करती है

~Aadarsh Dubey

mujh ko mujh se hi juda karti hei
Vo mujhe roz naya karti hei

Bad me rakhti hei koyi marham
Pahle vo zakhm hara karti hei

Koyi to hei jo mere is dil ko
Eik khat roz likha karti hei

hum vo ujdi hui basti jiske
Badduaa saath raha karti hei

Rishtaa koyi bhi ho lekin aurat
Apna har farz ada karti hei

Jab bhi haathon me uthata hun qalam
Teri tasweer bana karti hei

Main abhi usko nahin jaan saka
Jo mere haq me duaa karti hei

~Aadarsh Dubey

Language: Hindi
1 Like · 202 Views
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