ग़ज़ल
सारे बहरों के कान खोलेंगे
जब ये गूँगे ज़बान खोलेंगे
किसको मालूम था कि मज़हब की
लोग इक दिन दुकान खोलेंगे
दिल के पन्ने भी खोलिए कब तक
सिर्फ गीता कुरान खोलेंगे
क्या ये सच है निक़ाब वो अपना
बज़्म के दरमियान खोलेंगे
तेरे ज़ुल्मो सितम के राज़ सभी
‘नूर’ ये नीम-जान खोलेंगे
✍️जितेन्द्र कुमार ‘नूर’
असिस्टेंट प्रोफेसर
डी ए वी पी जी कॉलेज आज़मगढ़